परधानी

 छोड़ि नौकरी करब किसानी , अगिले सालि लड़ब परधानी । 

कवन फायदा एम टेक कइ के , का होई एम बी ए कइ के । 

एन्ने - ओन्ने रोज भटकबा , एम ए , बी ए , सी ए कइ के ।

 मालिक कै गारी सुनि - सुनि के , कटिहैं सगरो चढ़ल जवानी । 

 अगिले सालि लड़ब परधानी । 

 मटका कै कुर्ता - पयजामा , ओकरे उप्पर पहिन क सदरी ।

  हाथ जोड़ि के दाँत चियरले . दिन भर घुम्मब बखरी - बखरी । 

  चाची , आजी , भउजी कहिके , बाँटब सबके शहद जुबानी । 

  अगिले सालि लड़ब परधानी ।

   ए टोला में दारू - मुरगा , ओ टोला में कम्बल बाँटब । 

   मना करी जे - जे लिहले से , तेकर कुछु दिन तलुआ चाटब ।

   जीती जाब तब्बै देखिलाब, सबके आपन मूल निसानी।  

   अगिले साल लड़ब परधानी कागज में पोखरा खनवाइब, कगजे में ओके पटवाइब। 

    कागज के खेली - खेल में, झोरा भरि - भरि नोटि कमाइब। 

     मार्शल अउर बुलेरो में फिर होई आपन रोज रवानी।  

     अगिले साल लड़ब परधानी।  

     मनरेगा में मन भर उछिलब, रखब लगे सरकारी कोटा।

       गोहूँ चाउर बेची - बेची के, पल्सर लेई बड़का बेटा। 

        चौराहा पर सांझ कटी ता, जिंदगी आपन लगी सुहानी, अगिले साल लड़ब परधानी। 

         पाँच साल की भितर - भितर चरतल्ली कोठी चमकाइब।  

  एम पी अउर एम्मलै कै फिर,हमहू खासमखास कहाइब ।

   रही दबदबा नात - बात में , मउजब जमि के कूल्हि परानी । अगिले सालि लड़ब परधानी । # व्यंग्य तक

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